देवदत्त
2012-01-01 14:51
Travis County,Travis County,Texas,United States
सूची
सूची | शीर्षक |
---|---|
1 | आपके प्रश्न का उत्तर |
2 | कुंडली के भावों का विश्लेषण |
A. पहला भाव (घर) – व्यक्तित्व और प्रकृति | |
B. दूसरा भाव – धन/संपत्ति और परिवार | |
C. तीसरा भाव- भाई-बहन और सामाजिक व्यवहार | |
D. चौथा भाव- घरेलू जीवन और उच्च शिक्षा | |
E. पांचवा भाव- प्रेम और संतान | |
F. छठवां भाव- स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती/फिटनेस | |
G. सांतवा भाव- वैवाहिक जीवन | |
H. आठवां भाव- असुविधाएं और रुकावटें | |
I. नौवां भाव- आध्यात्मिकता और भाग्यस्थान | |
J. दसवां भाव- कॅरियर और कर्म स्थान | |
K. ग्यारहवां भाव- लाभ और प्राप्ति | |
L. बारहवां भाव- कर्म प्रभाव या मोक्ष स्थान | |
3 | आपकी कुंडली में योग |
4 | आपकी कुंडली में दोषों |
5 | वर्तमान महादशा अवलोकन |
6 | आपकी जन्म प्रोफ़ाइल |
A. सामान्य जानकारी – ज्योतिषीय विवरण – पंचांग विवरण – भाग्यशाली बिंदु | |
B. अवकहडा चक्र – घात चक्र – निरयन ग्रह/ ग्रहों की अवस्था – अष्टक वर्ग | |
C. स्थायी मित्रता – अस्थायी मित्रता – पंचधा या यौगिक या दीर्घावधि मित्र | |
7 | पंचांग राशिफल |
8 | आपका जन्म चार्ट |
A. लग्न कुंडली – चंद्र कुंडली – सूर्य कुंडली | |
B. अष्टक वर्ग कुंडली – भाव कुंडली (चालित कुंडली) | |
C. D2 कुंडली To D12 कुंडली | |
9 | व्यक्तिगत उपाय |
10 | साढ़े साती गणना |
आपके प्रश्न का उत्तर
प्रिय देवदत्त के माता-पिता, आपके प्रश्न के उत्तर में बताना चाहूंगी कि सर्वप्रथम तो यदि आपने इन के नक्षत्र की पूजा नहीं कराई है तो इनका जन्म अश्विनी नक्षत्र में हुआ है जिसकी पूजा कराने एक आवश्यकता है। इस नक्षत्र में जन्म को गंडांत जन्म भी कहा जाता है। यह आने वाले समय में अश्विनी नक्षत्र के दिन कराई जा सकती है।
इसके अतिरिक्त इनकी जन्म पत्रिका के द्वितीय भाव में मंगल केतु अंगारक दोष बना रहे हैं जिससे उनकी वाणी में कड़वाहट, सदैव बनी रहेगी या इनकी वाणी में कुछ विकार हो सकता है। मंगल केतु अंगारक दोष की पूजा भी कराई जानी चाहिए। इसके आपको इनको अभी से ही भगवान श्री सूर्य देव की उपासना गायत्री मंत्र के द्वारा करने की आदत डाल देनी चाहिए। इनके जन्मपत्रिका में इनके भाग्य के स्वामी सूर्य अपने नीच राशि में हैं, अतः भाग्य से लाभ पाने के लिए इनके लिए सूर्यपूजा आवश्यक है। इनकी आयु के 14 वर्ष पूर्ण होने के पश्चात इनको एक माणिक पहना दिया जाना चाहिए।
कुंडली के भावों का विश्लेषण
पहला भाव (घर) – व्यक्तित्व और प्रकृति
अंशी ,एक आधिकारिक व्यक्तित्व की धनी हैं। वे निरंतरता के साथ काम करना पसंद करती हैं, इनको अपने काम में किसी तरह का दखल पसंद नहीं होगा । वे टीम वर्क से प्यार करती हैं और सर्वश्रेष्ठ टीम लीडर साबित होंगी। वे हर विषय का गहराई से विश्लेषण करेंगी और innovations में विश्वास करने वाली होंगी।
दूसरा भाव – धन/संपत्ति और परिवार
जीवन के महत्वपूर्ण मामलों में आपको अपेक्षित पारिवारिक सहयोग नहीं मिलेगा। अपने परिवार के साथ संतुलित संबंध रखने के लिए बचपन से मीठा बोलने की आदत डालने की कोशिश की जानी चाहिए । आप अक्सर कड़वा बोलकर अपने रिश्ते परिवार में बिगाड़ सकती हैं अतः बचपन से ही आपको अपनी इस आदत पर रोक लगाने की कोशिश करनी चाहिए। आप अपने वित्तीय क्षेत्र में उतार-चढ़ाव का अनुभव कर सकती हैं परंतु बचपन से आपको धन को सही उपयोग में लेने की आदत रहेगी। अंशी आप अपने प्रयासों से ही धनार्जन करेंगी, और अच्छी आर्थिक स्थिति रहेगी आपको जमीन में धन निवेश करने से पूर्व सदा ही सतर्क रहना होगा। आपके नाम से आपके जन्मस्थान से दूर जमीन हो सकती है। क्योंकि दूसरे भाव पर राहु का प्रभाव भी है अतः आप कभी-कभी शॉर्ट कट अपना सकती हैँ अतः माता-पिता इस बात का ध्यान बचपन से ही रखने की कोशिश करें।
तीसरा भाव- भाई-बहन और सामाजिक व्यवहार
इनके भाई-बहनों से संबंधअच्छे होंगे, उनके जीवन में अच्छा स्थान होगा, और एक स्वस्थ रिश्ते की भी उम्मीद करेंगी । वे मजबूत सामाजिक दायरे को बनाए रखने में दृढ़ विश्वास रखेंगी और उसके लिए पहल भी करेंगी। वे ऊर्जावान हैं और आपको इनकी ऊर्जा के रचनात्मक पहलू पर ध्यान देकर सकारात्मक मोड़ देने की कोशिश करनी होगी ।
चौथा भाव- घरेलू जीवन और उच्च शिक्षा
इन का घरेलू जीवन अच्छा और संतोषजनक रहेगा और जीवन का सुख मिलेगा। । इन पर कई जिम्मेदारियां रहेंगी। वे परिवार के सदस्यों के साथ खुशी का अनुभव करेंगी। अपने गुणों से वे सबको प्रभावित करेंगी। अपने कर्तव्य की प्रबल भावना से आप अपने आस-पास के सभी लोगों के साथ एक रिश्ता बना लेंगी, लेकिन कभी-कभी आपके स्वभाव का चिढ़चिढ़ापन और बेवजह शक करना घरेलू जीवन को अस्त-व्यस्त कर देता है।आप उच्च शिक्षा के लिया जन्मस्थान से दूर जा सकती हैं , या आपका जन्म स्थान जल्दी छूट सकता है।
पांचवा भाव- प्रेम और संतान
आप प्यार में वास्तव में भाग्यशाली हैं और आप जिससे प्यार करती हैं उसके लिए आप ऊर्जा और प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत हैं लेकिन कभी-कभी आप आपनी कड़वी वाणी से रिश्ते बिगाड़ सकती हैं, और अपने निकट रिश्तों को नाराज कर बैठती हैं। अतः अभी से आपको रिश्तों की अहमियत समझने की जरूरत होगी। इनका अपने बच्चों का आपसे जुड़ाव रहेगा लेकिन उन्हें शिक्षा के लिए अपने जन्मस्थान से दूर जाना पड़ सकता है। एक यह असंतोष आपको कभी-कभी निराशा और गहरी उदासी देता है।
छठवां भाव- स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती/फिटनेस
बचपन से ही माता -पिता को इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने के लिए व्यायाम और भोजन के माध्यम से कुछ प्रयास करने चाहिएं। आपकी जन्मपत्रिका के आठवें भाव में राहु की स्थिति ये बताती है किसी भी स्वास्थ्य समस्या के मामले में सुनिश्चित करें कि निदान ठीक से किया गया है।आपको कब्ज की शिकायत हो सकती है। खास तौर पर पानी और तरल पदार्थों का उपयोग अधिक किया करें । अनावश्यक तनाव न लें।
सांतवां भाव- वैवाहिक जीवन
आपके सप्तम भाव के स्वामी बुध ग्यारहवें भाव में नीच के सूर्य और के साथ स्थित हैं जो कि आपके भाग्य के स्वामी भी हैं, अतः वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बनाए रखने के लिए भी आपको भगवान श्री गणेश की उपासना करना आवश्यक होगी।यद्यपि आप एक दूसरे के पूरक होंगे और एक दूसरे की ताकत बनने की कोशिश करेंगे। सप्तम और नवम भाव के स्वामियों का एक साथ होना यह भी संकेत देता है कि आपका भाग्य आपके विवाह के बाद उदय होगा।
आपको व्यावसायिक साझेदारी से बचना चाहिए क्योंकि आप बहुत सीधे आगे हैं।आप अपने व्यक्तिगत जीवन में 27 से 29 वर्ष की आयु के मध्य सेटल हो सकती हैं । आपके भावी जीवन साथी दिखने में सुंदर, कद-काठी में पतला होंगे । उनका लंबा चेहरा, काली तीखीआंखें, चौड़ा माथा होगा। वे बहुत अनुशासित, बहुत सधी हुई वाणी वाले और अच्छी कम्युनिकेशन स्किल्स रखने वाले होंगे और उनका अच्छा सेंस ऑफ ह्यूमर होगा।
आपके भावी साथी एक बुद्धिजीवी होंगे और आपकी भावनाओं को आसानी से आंक सकेंगे। उन्हें प्यार और पारस्परिकता की उत्कृष्ट समझ हो सकती है। वह धन अर्जन करने में होशियार होंगे और आप उससे अधिकतम गुणों की उम्मीद कर सकते हैं। लेकिन, कभी-कभी प्रतिबद्धता की कमी आपको निराश कर सकती है, क्योंकि वे calculative हो सकते है और भावनाओं में भी, वे लाभ और हानि के बारे में अपने मस्तिष्क में सक्रिय रह सकते हैं।
आठवां भाव- असुविधाएं और रुकावटें
आप खुद से काफी उम्मीदें रखकर और कुछ मानक तय करेंगी। इस प्रक्रिया में आप कभी-कभी अधिक मेहनत करके असहज हो सकती हैं। आप अपने आस-पास के सभी लोगों से समान स्तर की ऊर्जा की अपेक्षा करेंगी और यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं तो वे कभी-कभी कठोर हो सकती हैं। आपको बबचपन से ही इन्हें समझना होगा कि सभी में समान ऊर्जा नहीं हो सकती ।
नौवां भाव- आध्यात्मिकता और भाग्यस्थान
आप एक भाग्यशाली व्यक्ति हैं लेकिन अपनी उपलब्धियों के लिए अक्सर कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। आपके लिए आध्यात्म रहस्यवादी हैं और इसे केवल की मन गहराई से ही समझा जा सकता है। जब आध्यात्म की बात आती है तो अनावश्यक धूमधाम और दिखावा आप नापसंद करती हैं। भाग्य के स्वामी सूर्य जन्मपत्रिका में कमजोर स्थिति में हैं अतः आपको बचपन से ही भगवान श्री सूर्य की उपासना करने की आदत डालनी चाहिए।
दसवां भाव- कॅरियर और कर्म स्थान
वे सफलता उन्मुख हैं और सम्मान की पाना चाहेंगी, इनको अधिकारी वर्ग से सहयोग मिलेगा और आमतौर पर इनकी अपेक्षा पर खरा रहेगा। वे आप साहसी होंगी और अपने बड़ों और वरिष्ठों के प्रति समर्पित रहेंगी । इनको प्रबंधन और प्रशासनिक क्षेत्रों से संबंधित व्यवसायों को चुन सकती हैं, रत्नों के लेन-देन से आपको समृद्धि प्राप्त होगी।जिस व्यवसाय में अच्छे संचार कौशल की आवश्यकता होती है, वह इनकी रुचि का क्षेत्र हो सकता है। आपके पास समझाने और बोलने की जबरदस्त शक्ति है, इसलिए मार्केटिंग आपके पेशे का दूसरा क्षेत्र हो सकता है। वे नवंबर 2042 के बाद कम उम्र में ही अपने व्यावसायिक जीवन में सेटल हो जाएंगी।
ग्यारहवां भाव- लाभ और प्राप्ति
धनार्जन के मामले में वे भाग्यशाली हैं। इनको माता-पिता का सहयोग भी प्राप्त होता है। आपकी आमदनी का स्तर अच्छा रहेगा। आपके पास वाहन, घर और जीवन की अन्य विलासिता हो सकती है। आप योजनाओं की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने में माहिर हैं। विदेशों से भी आपकी कमाई होगी।आपके पास किए गए कार्यों को पूरा करने की जन्मजात क्षमता है। आप धन संचय में विश्वास रखेंगी । आपको अपने आस-पास बिखरे संसाधनों को संभालने के लिए एक ज्ञान विकसित करना चाहिए।
बारहवां भाव- कर्म प्रभाव या मोक्ष स्थान
आपके कर्म बंधन आपके परिवार के साथ है,आप अपने परिवार के लिए मजबूत बनें। आपको परिवार के सदस्यों की धन और नैतिक समर्थन से मदद करनी पड़ सकती है। जीवन में आपको जिन संघर्षों का सामना करना पड़ेगा, वे आपको मजबूत बनाने के लिए हैं। सुनिश्चित करें कि कोई दिखावा परिवार के केस में न करें।
अधी योग
परिभाषा
यदि शुभ ग्रह (बुध, बृहस्पति और शुक्र) चंद्रमा से ६ वें, ७ वें और ८ वें में स्थित हैं, तो संयोजन से अधी योग बनता है।
भविष्यफल
आप बुद्धिमान, विनम्र और विश्वास-योग्य होंगे। आप धनी होंगे और सुखद और खुशहाल जीवन व्यतीत करेंगे। आप विलासिता और संपन्नता से घिरे रहेंगे। आप स्वस्थ रहेंगे और लंबी उम्र जीएंगे। आप अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करेंगे।
बुध-आदित्य योग
परिभाषा
वैदिक ज्योतिष में प्रचलित परिभाषा के अनुसार किसी कुंडली के किसी स्थान में जब सूर्य तथा बुध संयुक्त रूप से स्थित हो जाते हैं तो ऐसी कुंडली में बुध-आदित्य योग का निर्माण हो जाता है।
भविष्यफल
बुध-आदित्य का शुभ प्रभाव जातक को बुद्धि, विशलेषणात्मक क्षमता, वाक कुशलता, संचार कुशलता, नेतृत्व करने की क्षमता, मान, सम्मान, प्रतिष्ठा तथा ऐसी ही अन्य कई विशेषताएं प्रदान कर सकता है। बुध हमारे सौर मंडल का सबसे भीतरी ग्रह है, जिसका अर्थ यह है कि बुध सूर्य के सबसे समीप रहता है तथा बहुत सी कुंडलियों में बुध तथा सूर्य एक साथ ही देखे जाते हैं जिसका अर्थ यह हुआ कि इन सभी कुंडलियों में बुध आदित्य योग बन जाता है जिससे अधिकतर जातक इस योग से मिलने वाले शुभ फलों को प्राप्त करते हैं जो वास्तविक जीवन में देखने को नहीं मिलता क्योंकि इस योग के द्वारा प्रदान की जाने वालीं विशेषताएं केवल कुछ विशेष जातकों ही मिलती है।
सतकालत्र योग
परिभाषा
यदि सप्तम भाव का स्वामी या शुक्र गुरु या बुध के साथ हो तो सतकालत्र योग बनता है।
भविष्यफल
आपकी धर्मपत्नी सुशील और गुणी होगी। उनके कुछ फिक्स सिद्धांत होते है, वह भक्तिवान और आप से तनमन से जुडी रहेती है।
राज योग
परिभाषा
बृहस्पति चंद्रमा से लग्न और केंद्र से ५ वें में होना चाहिए और लग्न एक निश्चित संकेत (वृषभ, सिंह, वृश्चिक, कुंभ) और लग्न भगवान एक राजयोग के लिए १० वें स्थान पर कब्जा करना चाहिए ।लग्न होने से चंद्रमा के साथ वृषभ राशि में, १० वें स्थान में शनि, चौथे स्थान में सूर्य और बृहस्पति को ७वें स्थान पर भी कब्जा करना होगा जिसके परिणामस्वरूप राज योग बन जाता है।यदि केंद्र के स्वामी (पहला, चौथा, 7 या 10वां स्थान) त्रिकोण (१, ५ या ९ वें स्थान) के स्वामी के साथ आदान-प्रदान में है, तो यह राज योग भी बनाता है ।
भविष्यफल
यह योग आपको ऊंचा करने में सक्षम है, भले ही आप विनम्र परिवेश में पैदा हों, शासक की स्थिति में हों । यह आपको राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम और प्रसिद्धि के साथ आशीर्वाद देगा। किसी सरकारी या निजी संगठन में आपको नाम, यश, सत्ता और अधिकार की स्थिति का आशीर्वाद मिलेगा।
शकट योग
परिभाषा
शकट योग किसी भी जातक की कुण्डली में तब निर्मित होता है जबकि कुण्डली के सभी ग्रह प्रथम (तनु) एवम् सप्तम (जाया) भाव में स्थित हों। इसके अलावा यदि चंद्रमा से गुरु छठे अथवा अष्टम भाव में स्थित हो , एवं गुरु लग्न या फिर अन्य तीन केंद्र स्थानों से बाहर हो तो कुंडली में शकट नामक बेहद दुर्भाग्यशाली योग बन जाता है।
भविष्यफल
यह आपकी जन्मकुंडली में एक अशुभ योग है। जीवन भर आपके कार्यों में विलंब हो सकता है। आप अभिमानी स्वभाव हो सकता है। जीवन में अधिकांशतः दुःख की छाया मंडराती रहेगी।
काल सर्प दोष
राहु और केतु क्रमशः चंद्रमा के आरोही और अवरोही नोड्स के वैदिक नाम हैं। संस्कृत शब्द काल के कई अर्थ हैं, जिनमें से एक समय है। सर्प का अर्थ है सर्प। काल सर्प दोष एक ऐसी घटना है जिसमें राहु और केतु से जुड़ी सर्पीली ऊर्जा खुद को अन्य ग्रहों के चारों ओर उलझा लेती है, जिससे ग्रहों की किरणें संकुचित और बाधित हो जाती हैं।
काल सर्प दोष 12 प्रकार के होते हैं। जन्म कुंडली में इस योग की उपस्थिति व्यक्ति के जीवन को दुखी और नुकीला बना सकती है। यह योग सामान्य रूप से चिंता और कठिनाई देता है। इसका मतलब यह नहीं है कि काल सर्प योग व्यक्ति के पूरे जीवन को खराब कर देता है। यह कर्म का बोझ है जो व्यक्ति को कुछ कठिनाइयों के माध्यम से महत्वपूर्ण सबक सिखाता है। यह एक अनूठी ऊर्जा बनाता है जो या तो कुछ महान बना सकती है या अच्छाई को नष्ट कर सकती है।
सौभाग्य से, काल सर्प दोष मौजूद नहीं है इसलिए आपको इन सभी समस्याओं के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए। धन्य महसूस हो रहा है....
मंगल दोष
मंगल दोष दांपत्य जीवन में दरार पैदा करता है। यह दांपत्य जीवन में मनमौजी समस्याएं भी पैदा करता है। यह अराजकता, असंतोष, बार-बार गर्म बहस पैदा करता है जो वैवाहिक जीवन में सामंजस्य के संबंध में अच्छा नहीं है। मंगल दोष के कारण एक दूसरे की अपेक्षाओं को समझने में कठिनाई हो सकती है। यह स्वास्थ्य समस्याओं का कारण भी बनता है और यदि प्रभाव गंभीर हो तो अलगाव से इंकार नहीं किया जा सकता है।
सौभाग्य से, मंगल दोष मौजूद नहीं है इसलिए आपको इन सभी समस्याओं के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए। धन्य महसूस हो रहा है....
इस समय आप शुक्र महादशा के प्रभाव में हैं जो कि 6 नवंबर 2041 तक रहेगी। शुक्र आपके छठे और ग्यारहवें भाव के स्वामी होकर अपनी ही राशि में भाग्य के स्वामी और दशम भाव के स्वामी बुध के साथ स्थित हैं। वे आपको अत्यधिक रचनात्मक बनाते हैं,आपकी लेखन क्षमता भी अद्भुत होगी। धन और आराम के ग्रह शुक्र आपको अपनी महादशा में शाही जीवन का आनंद देंगे। शिक्षा के क्षेत्र में समर्थन और लाभ मिलेगा । चार पहिया वाहन, भोजन आदि सभी सुख-सुविधाओं के विषय आपकी पहुंच के भीतर होंगे।आपको इतना मजबूत होना चाहिए कि आप इन सुख-सुविधाओं में की अधिक आकर्षित ना हों और व्यवहार का संतुलन बनाए रखें।इन आरामदायक स्थितियों को अपनी लत न बनने दें क्योंकि उतार-चढ़ाव आपको परेशान कर सकता है। आप कलात्मक क्षेत्र में भी अपना हाथ आजमा सकती हैं।
सामान्य जानकारी
नाम | AANSHI PANCHAL |
लिंग | महिला |
जन्म की तारीख़ | 24 October, 2018 बुधवार |
जन्म का समय (घंटे-मि.-से.) | 12:33:00 PM मानक समय |
समय क्षेत्र (घंटे-मि.) | -06:00 ग्रीनविच रेखा के पूर्व से |
चंद्र राशि | मेष |
लग्न | धनु |
सूर्य राशि (Western) | वृश्चिक |
जन्म स्थान | Travis County |
देश | United States |
देशांतर और अक्षांश (डिग्री-मि.) | 97.46 West, 30.19 North |
अयनांश गणना | चित्र पक्ष = 24डिग्री. 06मि. 50से. |
ज्योतिषीय विवरण
राशि का स्वामी | मंगल |
नक्षत्र का स्वामी | केतु |
चरण | 3 |
नाम अक्षर | A, L, E | अ, ल, इ |
नक्षत्र चरण अक्षर | चो (Cho) |
पाया | चांदी |
लग्न स्वामी | बृहस्पति |
आत्म करक -(आत्मा करकामासा) : | बुध |
अमात्यकारक (बुद्धि/मन) | प्लूटो |
दशा प्रणाली | विमशोत्तरी, वर्ष = 365.25 दिन |
पंचांग विवरण
सूर्योदय (घंटे-मि.) | 18:09 |
सूर्यास्त (घंटे-मि.) | 05:20 |
स्थानीय माध्य समय (LMT) | 21:39:20 |
साप्ताहिक दिन | बुधवार |
जन्म तारा/नक्षत्र | अश्विनी |
तिथि (चंद्र दिवस) | कृष्ण पक्ष प्रतिपदा |
करण | बलव |
नित्य योग | वज्र |
भाग्यशाली बिंदु
अनुकूल दिन | गुरुवार और रविवार |
अनुकूल रंग | पीला |
भाग्यशाली अंक | 9,12 |
प्रेरक देवता | विष्णु जी |
भाग्यशाली दिशा | पूर्व |
भाग्यशाली अक्षर | श, म, ह और अ |
अनुकूल धातु | पीतल |
करण | बलव |
नित्य योग | वज्र |
वर्ग | सिंह |
वर्ण | क्षत्रिय |
तत्त्व | अग्नि |
वश्य | चतुष्पाद |
योनि | अश्व |
गण | देव |
युंजा | पूर्व |
नाडी | आद्य |
अवकहडा चक्र विवरण
यहां दिखाई गई तालिका या सारणी में विभिन्न ज्योतिषीय शब्द हैं, जो आपके चंद्रमा की स्थिति से प्राप्त किए गए हैं। इसलिए, यह तालिका वैदिक ज्योतिष में बहुत उपयोगी है, क्योंकि यह आपकी व्यक्तिगत जानकारी को दर्शाती है। यह जातक की दूसरों के साथ संगतता या अनुकूलता निर्धारित करने में मदद करती है।
घात चक्र वर्णन
जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है, घात का शाब्दिक अर्थ होता है नकारात्मक या अशुभ । यह सारणी आपकी व्यक्तिगत कुंडली की नकारात्मक घटनाओं को दर्शाती है। जिनकी आपको अतिरिक्त देखभाल करनी चाहिए और सावधान रहना चाहिए। साथ ही कोई शुभ कार्य की शुरुआत करने से पहले कुंडली के अनुसार बताये गए दिन, तिथि, वार महीना और नक्षत्र को टालना चाहिए। ताकि किसी प्रकार की असुविधा से बचा जा सके।
माह | कार्तिक |
तिथि | शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, शुक्ल पक्ष षष्टी, शुक्ल पक्ष एकादशी, |
दिन | रविवार |
नक्षत्र | मघा |
योग | विष्कुंभ |
करण | बव |
प्रहर | प्रथम |
पुरुष चंद्र | मेष |
स्त्री चंद्र | मेष |
निरयन ग्रह
नीचे दी गई तालिका में "निरयन या नक्षत्रीय ग्रहों की स्थिति" दिखाई गई है, जो एक सटीक जन्म कुंडली देने के लिए बहुत आवश्यक होती है।
तालिका में दिखाए गए ग्रह देशांतरों का उपयोग अन्य विभागीय कुंडली (वर्ग कुंडली) के निर्माण में किया जाता है।
ग्रह | वक्री/प्रतिगामी | राशि | डिग्री | राशि स्वामी | नक्षत्र | नक्षत्र स्वामी | घर |
---|---|---|---|---|---|---|---|
लग्न | - | धनु | 24:9:49 | बृहस्पति | पूर्वाषाढ़ा | शुक्र | प्रथम |
सूर्य | ना | तुला | 07:10:32 | शुक्र | स्वाति | राहु | एकादशम |
चंद्र | ना | मेष | 08:06:38 | मंगल | अश्विनी | केतु | पंचम |
मंगल | ना | मकर | 23:03:40 | शनि | श्रवण | चंद्र | द्वितिय |
बुध | हां | तुला | 27:28:32 | शुक्र | विशाखा | बृहस्पति | एकादशम |
बृहस्पति | ना | वृश्चिक | 02:42:26 | मंगल | विशाखा | बृहस्पति | द्वादषम |
शुक्र | ना | तुला | 10:06:20 | शुक्र | स्वाति | राहु | एकादशम |
शनि | ना | धनु | 10:16:01 | बृहस्पति | मूल | केतु | प्रथम |
राहु | हां | कर्क | 07:05:29 | चंद्र | पुष्य | शनि | अष्टम |
केतु | हां | मकर | 07:05:29 | शनि | उत्तराषाढा | सूर्य | द्वितिय |
हर्षल | ना | मेष | 06:24:37 | मंगल | अश्विनी | केतु | पंचम |
नेप्चून | ना | कुंभ | 19:51:23 | शनि | शतभिषा | राहु | तृत्तिय |
प्लूटो | ना | धनु | 24:46:56 | बृहस्पति | पूर्वाषाढ़ा | शुक्र | प्रथम |
क्या है अष्टक वर्ग?
अष्टक वर्ग सिद्धांत वैदिक ज्योतिष के सबसे उत्कृष्ट भविष्यवाणी सिद्धांतों में से एक है। अष्टक वर्ग सिद्धांत की सहायता से कुंडली में ग्रहों की स्थिति के आधार पर कर्म फल ज्ञात करने के लिए बिंदु प्रणाली का उपयोग किया जाता है। 'अष्ट' का अर्थ होता है 'आठ' और 'वर्ग' का अर्थ 'वर्गीकरण', इसलिए अष्टक वर्ग सिद्धांत का अर्थ है, आठ गुना वर्गीकरण। यह आठ तह में स्थित लग्नों सहित, ग्रहों और भावों की शक्ति का निर्धारण करता है। शक्ति का निर्धारण करते समय चंद्रमा की स्थिति को बाहर रखा गया है। ग्रहों की शक्ति का निर्धारण कुछ निश्चित सुव्यवस्थित नियमों के आधार पर किया जाता है। प्रत्येक ग्रह की शक्ति, साथ ही जातक पर इसके प्रभाव के कारण पड़ने वाली शक्ति और तीव्रता, पूरी तरह से शेष छह ग्रहों की स्थिति और उनके संबंधित लग्न पर निर्भर करती है।
सात ग्रहों और लग्नों की शक्ति को एक तालिका या सारणी के रूप में निर्धारित किया जाता है। इस प्रणाली में, ग्रहों और लग्नों को संदर्भ बिंदु के रूप में उपयोग किया जाता है, और उनमें से प्रत्येक को 8 पूर्णांक दिए गए हैं। ग्रहों और लग्नों को 0 से 8 तक अंक दिए जाते हैं, जो किसी जातक की कुंडली में अलग-अलग राशियों पर स्थित होते हैं। यह किसी एक ग्रह के गोचर के दौरान किसी दूसरे ग्रह पड़ने वाले शुभ या अशुभ प्रभावों की संभावना को भी निर्धारित करता है। समस्त प्रमुख और अमुख्य घटनाएं और उनके घटने के समय की गणना मुख्य रूप से कुछ बिंदुओं की स्थिति से निर्धारित किया जाता है। प्राप्तांक परिणाम पूर्ण रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि कोई ग्रह किसी दूसरे ग्रह के साथ कितना शुभ या अशुभ प्रभाव उत्पन्न करता है। प्रत्येक ग्रह अलग-अलग अंक प्राप्त करता है, जो प्रत्येक जातक के लिए अद्वितीय होता है, और उन्हें यह जानने में मदद करता है, कि कोई ग्रह विशेष उनके लिए कितना अनुकूल है।
जो ग्रह 0 अंक प्राप्त करता है, उसे सबसे अशुभ माना जाता है, 1 से 3 अंक प्राप्त करने पर हीन या निम्न माना जाता है, 4 अंक प्राप्त करने पर तटस्थ या उदासीन और 5 से 8 अंक प्राप्त करने पर शुभ और भाग्यशाली माना जाता है। जातक ग्रहों के नकारात्मक या सकारात्मक प्रभाव के आधार पर उपचारात्मक उपाय कर सकते हैं। वे इसके प्रभाव के कारण होने वाले संभावित परिणामों के बारे में जानकारी प्राप्त कर, स्वयं को इसके बुरे प्रभाव से बचा सकते हैं। अष्टकवर्ग सारणी में ग्रहों के प्राप्तांक, भविष्य में होने वाले संभावित परिणामों से अवगत होने में जातक की मदद करने के लिए सबसे अच्छे मार्गदर्शकों में से एक होते हैं।
प्राप्तांक बनाम प्रभाव
प्राप्तांक | प्रभाव |
0 | अशुभ |
1-3 | निम्न |
4 | तटस्थ |
5-8 | शुभ |
ग्रह | सूर्य | चंद्र | मंगल | बुध | बृहस्पति | शुक्र | शनि | कुल |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|
मेष | 4 | 5 | 2 | 2 | 4 | 3 | 3 | 23 |
वृषभ | 2 | 6 | 2 | 3 | 5 | 4 | 5 | 27 |
मिथुन | 4 | 4 | 2 | 5 | 5 | 5 | 3 | 28 |
कर्क | 5 | 3 | 3 | 5 | 4 | 5 | 2 | 27 |
सिंह | 4 | 4 | 6 | 5 | 7 | 7 | 3 | 36 |
कन्या | 7 | 4 | 5 | 7 | 2 | 4 | 5 | 34 |
तुला | 4 | 6 | 4 | 6 | 5 | 3 | 5 | 33 |
वृश्चिक | 3 | 2 | 1 | 3 | 6 | 3 | 2 | 20 |
धनु | 2 | 3 | 4 | 4 | 4 | 5 | 2 | 24 |
मकर | 4 | 3 | 1 | 5 | 5 | 2 | 1 | 21 |
कुंभ | 4 | 7 | 5 | 5 | 6 | 5 | 3 | 35 |
मीन | 5 | 2 | 4 | 4 | 3 | 6 | 5 | 29 |
-- | 48 | 49 | 39 | 54 | 56 | 52 | 39 | 337 |
स्थायी मित्रता
यहाँ मित्रता से तात्पर्य है कि एक ग्रह दूसरे ग्रह के साथ कितना मैत्री व्यवहार करता है। ग्रहों की इस प्रकार की मित्रता या अनुकूलता उनकी प्रकृति और प्राकृतिक गुणों पर आधारित होती है। इस प्रकार ग्रहों के भी कुछ प्राकृतिक मित्र और शत्रु होते हैं। कभी-कभी वे कुछ ग्रहों के साथ उदासीन या तटस्थ भी रहते हैं।
ग्रह | सूर्य | चंद्र | मंगल | बुध | बृहस्पति | शुक्र | शनि |
---|---|---|---|---|---|---|---|
सूर्य | -- | मित्र | मित्र | तटस्थ | मित्र | दुश्मन | दुश्मन |
चंद्र | मित्र | -- | तटस्थ | मित्र | तटस्थ | तटस्थ | तटस्थ |
मंगल | मित्र | मित्र | -- | दुश्मन | मित्र | तटस्थ | तटस्थ |
बुध | मित्र | दुश्मन | तटस्थ | -- | तटस्थ | मित्र | तटस्थ |
बृहस्पति | मित्र | मित्र | मित्र | दुश्मन | -- | दुश्मन | तटस्थ |
शुक्र | दुश्मन | दुश्मन | तटस्थ | मित्र | तटस्थ | -- | मित्र |
शनि | दुश्मन | दुश्मन | दुश्मन | मित्र | तटस्थ | मित्र | -- |
अस्थायी मित्रता
ग्रहों की इस प्रकार की मित्रता, इस बात पर निर्भर करती है कि किसी भी कुंडली में ग्रहों को कैसे दर्शाया गया है। जो ग्रह किसी जातक की कुंडली के दूसरे, तीसरे, चौथे, 10 वें, 11 वें और 12 वें भाव में स्थित होते हैं, वे अस्थायी मित्र माने जाते हैं। जबकि शेष बचे हुए ग्रहों को अस्थायी शत्रु माना जाता है।
ग्रह | सूर्य | चंद्र | मंगल | बुध | बृहस्पति | शुक्र | शनि |
---|---|---|---|---|---|---|---|
सूर्य | -- | दुश्मन | मित्र | दुश्मन | मित्र | दुश्मन | मित्र |
चंद्र | दुश्मन | -- | मित्र | दुश्मन | दुश्मन | दुश्मन | दुश्मन |
मंगल | मित्र | मित्र | -- | मित्र | मित्र | मित्र | मित्र |
बुध | दुश्मन | दुश्मन | मित्र | -- | मित्र | दुश्मन | मित्र |
बृहस्पति | मित्र | दुश्मन | मित्र | मित्र | -- | मित्र | मित्र |
शुक्र | दुश्मन | दुश्मन | मित्र | दुश्मन | मित्र | -- | मित्र |
शनि | मित्र | दुश्मन | मित्र | मित्र | मित्र | मित्र | -- |
पंचधा या यौगिक या दीर्घावधि मित्र
यह प्राकृतिक मित्रता और अस्थायी मित्रता के तहत आने वाले संबंधों के संयोजन या योग है।
ग्रह | सूर्य | चंद्र | मंगल | बुध | बृहस्पति | शुक्र | शनि |
---|---|---|---|---|---|---|---|
सूर्य | -- | तटस्थ | परम मित्र | दुश्मन | परम मित्र | विकट शत्रु | तटस्थ |
चंद्र | तटस्थ | -- | मित्र | तटस्थ | दुश्मन | दुश्मन | दुश्मन |
मंगल | परम मित्र | परम मित्र | -- | तटस्थ | परम मित्र | मित्र | मित्र |
बुध | तटस्थ | विकट शत्रु | मित्र | -- | मित्र | तटस्थ | मित्र |
बृहस्पति | परम मित्र | तटस्थ | परम मित्र | तटस्थ | -- | तटस्थ | मित्र |
शुक्र | विकट शत्रु | विकट शत्रु | मित्र | तटस्थ | मित्र | -- | परम मित्र |
शनि | तटस्थ | विकट शत्रु | तटस्थ | परम मित्र | मित्र | परम मित्र | -- |
जन्म का दिन | बुधवार |
जन्म तारा (नक्षत्र) | अश्विनी |
चंद्र दिवस (तिथि) | कृष्ण पक्ष प्रतिपदा |
करण | बलव |
नित्य योग | वज्र |
आपका जन्म हुआ: बुधवार
जैसा कि आप बुधवार को पैदा हुए हैं, तो आपके बहुत सारे दोस्त बनने की संभावना होती है। क्योंकि आप मेलमिलाप और मिलनसार व्यक्ति हैं। आप एक प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं, और हर दिन कुछ नया जानने की प्रवर्ति रखते हैं। कभी-कभी, आप त्वरित प्रतिक्रियाएँ देते हैं, और तेजी से सीखने की क्षमता भी रखते हैं। लोगों से संचार करना आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण है। आप तीक्ष्ण बुद्धि वाले हैं, आप सपने देखते हैं और कुछ ही क्षणों में बहुत दूर तक की सोच लेते हैं। आप विद्वान हैं, और आपकी विचार प्रक्रिया वैज्ञानिक और तार्किक होती है।
आपका जन्म-नक्षत्र (तारा): अश्विनी
अश्विनी नक्षत्र में जन्मे लोग आमतौर पर हंसमुख होते हैं, और हमेशा उत्साह से भरे रहते हैं। ये बहुत सक्रिय होते हैं, हमेशा कुछ न कुछ करने में व्यस्त रहते हैं। अगर और कुछ नहीं है, तो ये अपना समय घर को साफ और स्वच्छ रखने में बिताते हैं।
ये उन लोगों के प्रति वफादार होते हैं, जो इन्हें प्यार करते हैं, और उनके प्यार के बदले में ये कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। लेकिन अश्विनी जातकों के कुछ अशिष्ट और अजीब व्यवहार को समझना दूसरों की ही ज़िम्मेदारी होती है। अगर दूसरे ऐसा कर सकते हैं, तो वे अश्विनी जातकों के सबसे अच्छा दोस्त साबित हो सकते हैं। अश्विनी जातक मुसीबत में लोगों के साथ सहानुभूति रखते हैं, और उनको उचित मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।
चंद्र दिवस (तिथि): कृष्ण पक्ष प्रतिपदा
तुला, मकर
जन्म तिथि के आधार पर परिणामप्रतिपदा तिथि पर जन्म लेने वाले जातक समृद्ध और बुद्धिमान होते हैं।
करण: बलव
बालव करण वाले जातक उग्र और अत्यधिक व्यस्त कार्य वाले माहौल को प्रबंधित करने में सफल होते हैं। ये अत्यधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर रहना पसंद करते हैं। ये अपने आस-पास के माहौल के प्रति उत्सुक होते हैं। इनकी दिनचर्या का सबसे महत्वपूर्ण समय सुबह के बजाय शाम को होता है। स्वभाव से शकी और जासूसी प्रवर्ति के होने के कारण इनके वैवाहिक जीवन में चुनौतियाँ आती रहती हैं।
नित्य योग: वज्र
वज्र योग वाले व्यक्तियों के पास एक मजबूत कद काठी होती है। ये कुश्ती, मुक्केबाज़ी और पहलवानी के लिए उपयुक्त होते हैं। ये अपने शारीरिक कौशल को दूसरों की सेवा में समर्पित करते हैं। उच्च आदर्शों के लिए ये सर्वोच्च बलिदान भी दे सकते हैं। ये अपने से कम उम्र के लोगों के साथ सहवास भी कर सकते हैं। ये असामाजिक तत्वों के साथ मिलकर नकारात्मक गतिविधियों में खुद को शामिल कर सकते हैं।
लग्न कुंडली
वैदिक ज्योतिष में, जन्म कुंडली को ही लग्न कुंडली, जन्म पत्री और लग्न पत्री के रूप में भी जाना जाता है। जो राशि आपके जन्म के समय और स्थान पर पूर्व दिशा में उदय होती है, वह आपकी लग्न राशि बन जाती और आपकी लग्न कुंडली या जन्म कुंडली को दर्शाती है। यह कुंडली सभी प्रकार की कुंडलियों में सबसे महत्वपूर्ण कुंडली होती है।
चंद्र कुंडली
वैदिक ज्योतिष के अनुसार भविष्यवाणी करने के लिए चंद्रमा या चंद्र कुंडली का महत्व भी बहुत महत्वपूर्ण है। चन्द्र कुंडली को तैयार करते समय, जन्म के चन्द्रमा को पहले भाव में रखा जाता है, तथा शेष ग्रहों को उसके अनुसार स्थिति दी जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो चंद्रमा को पहले भाव में लाने के लिए हम कुंडली को घूमा देते हैं।
सूर्य कुंडली
सूर्य कुंडली, जन्म के समय सूर्य को पहले घर में रखकर बनाई जाती है। इस कुंडली को सूर्योदय कुंडली के रूप में भी देखा जाता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो, सूर्य कुंडली, मात्र सूर्य द्वारा ही निर्धारित की जाती है। इसमें ना तो लग्न की कोई भूमिका होती है और ना ही चंद्र की। इसलिए यह सूर्य कुंडली केवल सूर्य की अभिव्यक्ति के आधार पर हमारी मूल पहचान बताती है।
अष्टक वर्ग कुंडली
वैदिक ज्योतिष के सबसे आसान सिद्धांतों में से एक है अष्टक वर्ग सिद्धांत। जो कुंडली के भाव और ग्रहों की ताकत को भी निर्धारित करता है।
अष्टक वर्ग सिद्धांत में, ग्रहों की शक्ति या भाव की शक्ति का चित्रण कुंडली या सारणीबद्ध प्रारूप में किया जा सकता है।
अष्टक वर्ग कुंडली या तालिकाओं का उपयोग करके, कोई भी कुंडली या सारणी में दिए गए अंकों को देखकर ही कई बातों का निष्कर्ष निकाला जा सकता है।
भाव कुंडली (चालित कुंडली)
वैदिक ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति जैसे अक्षांश और देशांतर भविष्यवाणी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यहाँ यह भी आवश्यक नहीं होता कि एक राशि या भाव में स्थिति 2 या 2 से अधिक ग्रह उस भाव को प्रभावित करते हों। साधारण भाषा में कहें तो किसी भी राशि में ग्रह की उपस्थिति महत्वपूर्ण नहीं होती। क्योंकि कभी-कभी राशि और भाव एक-दूसरे पर अतिव्यापी हो जाते हैं।
एक भाव कुंडली या चालित कुंडली लग्न कुंडली का ही व्यापक रूप है। इसलिए कह सकते हैं कि चालित कुंडली, लग्न कुंडली से ली गई है।
D2 - होरा कुंडली
होरा कुंडली किसी जातक की धन और वित्तीय समृद्धि के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
होरा कुंडली को 2 भागों में विभाजित किया गया है। जिसमे मात्र दो राशि या लग्न, कर्क व सिंह होते हैं।
जिसके तहत समस्त पुरुष राशि जैसे मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु और कुंभ पहले 15 डिग्री में स्थित होती हैं, जो सिंह राशि के अंतर्गत आती हैं। शेष अगले 15 डिग्री की राशियां, कर्क राशि के अंतर्गत आती हैं। इसी प्रकार समस्त स्त्री राशि जैसे वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन पहले 15 डिग्री में स्थित होती हैं, जो कर्क अंतर्गत आती हैं। शेष अगले 15 डिग्री की राशियां, सिंह राशि के अंतर्गत आती हैं।
D3 - द्रेष्काण कुंडली
यह कुंडली, जन्म कुंडली के तीसरे भाव के छिपे हुए पहलुओं को ही प्रकट करती है। दूसरे शब्दों में कहें तो द्रेष्काण कुंडली किसी जातक की जन्म कुंडली के तीसरे भाव का ही विस्तृत रूप होती है। तीसरा भाव सहोदरों यानी भाई-बहनों के छिपे हुए पहलुओं, संचार, छोटी दूरी की यात्रा, लेखन, सुनने, ऊपरी बाँह, रिश्तेदारों, पड़ोसियों, बहादुरी, वीरता, साहस, आशावादी, कड़ी मेहनत और साहस को प्रकट करता है
D4 - चतुर्थमांश कुंडली
चौथी विभागीय कुंडली को चतुर्थमांश के नाम से जाना जाता है। यह कुंडली भौतिक आराम और धन भाव पर प्रभाव के लिए भविष्यफल ज्ञात से संबंधित होती है। D-4 कुंडली किसी ग्रह के लक्षण को सत्यापित कर सकती है, जो मूलभूत शारीरिक और सांस्कृतिक प्रतिभूतियों को उत्पादित करता है। चंद्रमा या चंद्र कारक की वास्तविक शक्ति की पुष्टि करने के लिए D-4 कुंडली को ध्यान से देखते हैं।
D5 – पंचमांश कुंडली
पाँचवीं विभागीय कुंडली को पंचमांश कुंडली के रूप में जाना जाता है। यह कुंडली प्रसिद्धि, अधिकार और शक्ति से संबंधित होती है। यह कुंडली ब्रह्मांड के दो पहलुओं अर्थात् - (1) प्राण या आत्मा या ऊर्जा - जातक की आध्यात्मिकता, और (2) भौतिक प्रकृति-जीवन के भौतिक पहलू का प्रतिनिधित्व करती है। पंचमांश विभागीय कुंडली जातक में आध्यात्मिकता और उसके अंदर किसी संत की तरह ब्रह्मांड के दो घटकों (आत्मा और शरीर) को अलग करने की उनकी क्षमता का प्रतिनिधित्व करती है।
D6 - षष्ठमांश कुंडली
D6 विभागीय कुंडली को ही व्यापक रूप से षष्ठमांश कुंडली के रूप में जाना जाता है, जो तकनीकी रूप से एक जन्म कुंडली के छठे भाव द्वारा निरूपित क्षेत्रों से संबंधित होती है। यह विधि ताजिका ज्योतिषीय विद्यालय से ली गयी है। यह कुंडली दैनिक मज़दूरी (नियमित आय), दुश्मनों और प्रतिद्वंद्वीयों, मातृ रिश्तेदारों, वसीयत से लाभ और सेवक-सेवाओं, मुक़द्दमों और ऋण, सामान्य बीमारी का प्रतिनिधित्व करती है। जन्म कुंडली के छठे भाव के संदर्भ रूप में इस कुंडली का विश्लेषण किया जाता है।
D7 – सप्तमांश कुंडली
सप्तमांश कुंडली का डी/7 भाग एक प्रभागीय कुंडली है। जिसका उपयोग बच्चों के जन्म बच्चों से जुड़ी प्रसन्नता के विश्लेषण के लिए किया जाता है। जन्म कुंडली और सप्तमेश कुंडली में 5वें भाव की शक्ति और हीनता हमें बच्चे के जन्म से जुड़ी ख़ुशियों के बारे में एक विचार देती है।
इसके अलावा, गर्भ धारण की अवधि और बच्चे के जन्म के समय का अध्ययन भी सप्तमांश कुंडली के माध्यम से किया जा सकता है।
D8 – अष्टमांश कुंडली
आठवीं विभागीय कुंडली को ही अष्टमांश कुंडली के रूप में जाना जाता है। यह कुंडली मुकदमेबाजी या बड़ी दुर्घटनाओं सहित अचानक और अप्रत्याशित घटनाओं और परेशानियों को इंगित करती है। यह एक व्यक्ति के जीवन में प्रमुख चुनौतियों और संकटों को भी इंगित करती है।
D9 - नवमांश कुंडली
यहाँ नवमांश का अर्थ होता है राशि का 9वां विभाजन। वैदिक ज्योतिष में नवमांश कुंडली को भविष्यवाणी करने के लिए प्रमुख महत्व दिया गया है।
इसे D-9 कुंडली के रूप में भी पहचाना जाता है। नवमांश कुंडली का निर्माण जन्म कुंडली से ही किया गया है, और इसीलिए नवमांश कुंडली जन्म कुंडली के संबंध में ही कार्य करती है।
D10 - दशमांश कुंडली
जन्म कुंडली का 10 वां भाव कर्म या पेशे का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए, दशमांश कुंडली जन्म कुंडली का ही दसवां भाव होती है। इसमें जातक के करियर जीवन के साथ-साथ उपलब्धियों के बारे में विस्तार से बताया जाता है। दशमांश कुंडली करियर का प्रतिनिधित्व करती है और जब किसी के करियर की रूपरेखा तैयार की जाती है, तो इसका उपयोग विस्तृत विश्लेषण के लिए किया जाता है।
D11 - लाभमांश / एकादशमांश कुंडली
यह गैर-पाराशरी प्रभागीय कुंडलियों में से एक है, जो ताजिका ज्योतिष विद्यालय से ली गयी है। एकादशमांश, D 11 कुंडली का ही दूसरा लोकप्रिय नाम है। यह प्रभागीय कुंडली सभी प्रकार के लाभ, आय-धन प्राप्ति, इच्छाओं की पूर्ति, कमाई की प्रकृति, पुरस्कार और मान्यता, लाभ और लाभार्जन, बड़े भाई, भौतिक आनंद, पैर, बाएँ कान, बाएँ ऊपरी अंग, बीमारी से छुटकारा को दर्शाती है। जन्म कुंडली के 11 वें भाव के संदर्भ रूप में इस कुंडली का विश्लेषण किया जाता है।
D12 - द्वादशांश कुंडली
द्वादशांश कुंडली में मूल रूप से माता-पिता (पैतृक और मातृ विरासत) के छिपे हुए पहलुओं का पता चलता है।
इसमें माता-पिता से संबंधित विभिन्न मामले जैसे उनकी सुख-समृद्धि, सामाजिक व वित्तीय स्थिति के साथ-साथ उनसे मिलने वाली ख़ुशी शामिल हैं।
प्रत्येक राशि के 12 भागों पर चार देवताओं का आधिपत्य होता है। इसलिए किसी राशि के स्वामी या अधिपति देवता की अनूठी विधि से पूजा करके हम कुंडली के विभिन्न भागों और यदि आवश्यक हो तो किसी ग्रह विशेष की मजबूती भी प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा करके हम किसी ग्रह के हानिकारक प्रभाव को कम कर सकते हैं, फिर भले ही उस ग्रह की दशा या परागमन अवधि ही क्यों न चल रही हो।
पनोति | पाया | अवस्था | प्रवेश की तारीख | अंतिम तारीख |
---|---|---|---|---|
साडे साति | - | पहला चरण | 29 Mar 2025 | 03 Jun 2027 |
साडे साति | - | पहला चरण | 03 Jun 2027 | 23 Feb 2028 |
साडे साति | - | दूसरा चरण | 23 Feb 2028 | 08 Aug 2029 |
साडे साति | - | तीसरा चरण | 08 Aug 2029 | 05 Oct 2029 |
साडे साति | - | दूसरा चरण | 05 Oct 2029 | 17 Apr 2030 |
साडे साति | - | तीसरा चरण | 17 Apr 2030 | 31 May 2032 |
छॊटी पनोति | तांबेका पाया | - | 13 Jul 2034 | 27 Aug 2036 |
छॊटी पनोति | लोहेका पाया | - | 11 Dec 2043 | 23 Jun 2044 |
छॊटी पनोति | चांदी का पाया | - | 30 Aug 2044 | 07 Dec 2046 |
साडे साति | - | पहला चरण | 14 May 2054 | 02 Sep 2054 |
साडे साति | - | पहला चरण | 05 Feb 2055 | 07 Apr 2057 |
साडे साति | - | दूसरा चरण | 07 Apr 2057 | 27 May 2059 |
साडे साति | - | तीसरा चरण | 27 May 2059 | 11 Jul 2061 |
साडे साति | - | तीसरा चरण | 14 Feb 2062 | 06 Mar 2062 |
छॊटी पनोति | लोहेका पाया | - | 24 Aug 2063 | 06 Feb 2064 |
छॊटी पनोति | चांदी का पाया | - | 09 May 2064 | 13 Oct 2065 |
छॊटी पनोति | तांबेका पाया | - | 04 Feb 2066 | 03 Jul 2066 |
छॊटी पनोति | लोहेका पाया | - | 05 Feb 2073 | 31 Mar 2073 |
छॊटी पनोति | लोहेका पाया | - | 23 Oct 2073 | 16 Jan 2076 |
छॊटी पनोति | चांदी का पाया | - | 10 Jul 2076 | 11 Oct 2076 |
साडे साति | - | पहला चरण | 20 Mar 2084 | 21 May 2086 |
साडे साति | - | पहला चरण | 21 May 2086 | 08 Feb 2087 |
साडे साति | - | दूसरा चरण | 08 Feb 2087 | 18 Jul 2088 |
साडे साति | - | तीसरा चरण | 18 Jul 2088 | 31 Oct 2088 |
साडे साति | - | दूसरा चरण | 31 Oct 2088 | 05 Apr 2089 |
साडे साति | - | तीसरा चरण | 05 Apr 2089 | 19 Sep 2090 |
साडे साति | - | तीसरा चरण | 25 Oct 2090 | 21 May 2091 |
छॊटी पनोति | चांदी का पाया | - | 02 Jul 2093 | 18 Aug 2095 |
व्यक्तिगत उपाय
प्राथमिक समाधान: आपके लिए सर्वाधिक आदर्श रत्न
Please Note: For a limited period, we are offering the beautifully designed Panchdhatu Ring, absolutely free of cost! It means, now you only have to pay for the Gemstone!
रत्न की ऊर्जा
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है, कि एक रत्न शक्तिहीन होता है, जब तक कि वह सही तरीके से सक्रिय न हो। इससे पहले कि आप इसे पहन सकें, रत्न को शुद्ध करने और सभी अशुद्धियों से मुक्त करने की आवश्यकता होती है।
लेकिन, आपको प्रक्रिया और अनुष्ठानों के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, जैसा कि, हमने गणेशस्पीक्स.कॉम पर आपके लिए विशेष रूप से एक रत्न को शुद्ध करने, सक्रिय करने और आकर्षित बनाने के लिए एक पारंपरिक और प्रामाणिक विधि विकसित की है! यह हमारे गहन शोध तथा वेदों और संबंधित ज्योतिष शास्त्रों की समझ पर आधारित है।
इसलिए, आप जो रत्न मंगवाते हैं, वह पहनने के लिए तैयार होता है!
आपके लिए पूजा:
परिचय
हालांकि मंगल और केतु प्रकृति में बहुत समान है, लेकिन इन दोनों के संयोजन को शुभ नहीं माना जाता है। साहस, दृढ़ संकल्प, दूसरों के बीच आत्मविश्वास जैसे गुणों के अलावा, मंगल ग्रह क्रोध, आवेग और हमारी गति जैसे क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता है। केतु के साथ संबंध मंगल की नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है और अक्सर यह देखा जाता है कि यह विनाशकारी प्रवृत्तियों को जन्म देता है। इस युति के कारण कई बार किसी अवसर पर आप असंवेदनशील कार्य करने के लिए मजबूर हो जाएंगे और वह भी बिना किसी पूर्वाभास के, जिसके कारण आपको बाद में पछताना पड़ सकता है।
यह काम किस प्रकार करता है ?
मंगल केतु अंगारक दोष निवारण पूजा में कलश की पूजा और अन्य पांच महत्वपूर्ण देवताओं अर्थात् गणेश, शिव, मातृका, नवग्रह, और प्रधान - देवता शामिल हैं। पूजा में मंगल (10,000 बार) और केतु (17,000 बार) बीज मंत्र का जाप व पाठ करना शामिल है। फिर, होम (हवन) का अनुष्ठान किया जाता है, जिसमें घी, सीसम, जौ और भगवान मंगल और केतु से संबंधित अन्य पवित्र सामग्री अग्नि को समर्पित की जाएगी, जबकि मंगल के 1,000 मंत्रों और केतु के 1,700 मंत्रों का पाठ किया जाएगा। यज्ञ व होम आपके कुंडली में अंगारक दोष के बुरे प्रभाव को दूर करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय है। अधिकतम सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने के लिए पूजा सबसे अच्छे मुहूर्त पर की जाएगी, जो केतु या मंगल के नक्षत्र में मंगलवार के दिन की जाएगी। मुहूर्त के दौरान पूजा को पूरा करने के लिए गणेशास्पीक्स एक आचार्य के नेतृत्व में 4 पुजारियों की एक टीम नियुक्त करेगा जो वैदिक अनुष्ठानों को शास्त्रोक्त विधि से पूरा करेंगे।
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लाभ
- अंगारक दोष के नकारात्मक प्रभाव को दूर करे
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- दुर्घटनाओं और दुर्भाग्य से बचे
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